प्रसन्नचित्त रहने से मन, मस्तिष्क तथा शरीर के अंग-प्रत्यंग अपना काम बखूबी करते हैं। खुलके हंसने से ल्यूब्रीकेटर की पूर्ति होती रहती है तथा उसमें जंग नहीं लगती है तथा शारीरिक एवं मानसिक परेशानियों से उबरना में मदद मिलती है | यह ध्यान रखना बेहद जरूरी है की जब हम सुखशान्ति को महसूस नहीं कर सकते है | अतः सकारात्मक सोच एवं मन की संतुष्टि होना ज़रूरी है |
हँसने से रक़्तचाप क्रम होता है, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। हँसते समय अधिक ऑक्सीजन अन्दर जाती है, इसमें ताजगी, स्फूर्ति मिलती है। हँसने से थकान है दूर होती है क्योंकि यह माँसपेशियों को आयम पहुँचाता है। रक्तवाहिनियों में फैलाव लाता है। पूरे शरीर में रक्त का प्रवाह बढ़ाता है।
हँसने से दर्द भी दूर होता है, क्योंकि हँसते समय रक्त में इंडोरफिन्स हार्मोन्स का स्तर बढ़ जाता है जो प्राकृतिक दर्द निवारक है।
हँसने से फेफड़ों की क्षमता बढती है और वे मजबूत भी बनते हैं, हँसने से चेहरे की माँसपेशियों की स्वाभाविक मसाज हो जाती है। हँसने, मुस्कुराने एवं प्रसन्नचित अवस्था में रहने से भूख अच्छी लगती है, हृदय अपना कार्य ठीक प्रकार से करता है, माँसपेंशियाँ मजबूत बनी रहती हैं तथा मस्तिष्क की कोशिकायें दक्षतापूर्वक अपना कार्य सम्पादित करती हैं, फेफड़े तथा पेट की माँसपेशियों को बल मिलता है |
जिससे न केवल वास्तविक जीवन के राज को समझने में आसानी होती है बल्कि जिन्दगी को जिन्दादिली के साथ जीने के सभी आननदों का भरपूर लाभ भी उठाया जा सकता है।

 
			 
                                             
                                             
                                            