एन्जाइम क्या होते हैं?
कॉर्नेल युनिवर्सिटी के बायोकेमिस्ट्री के प्रोफेसर डॉ. जेम्स बी. सम्नर के मतानुसार अच्छे स्वास्थ्य के लिए तीन प्रकार के तत्त्व विशेष रूप से आवश्यक हैं – विटामिन्स के प्रकार, क्षार तथा ऍन्जाइम (उत्सेचक ) ।
एंजाइम एक प्रकार का उद्दीपक पदार्थ (catalyst) है। इसकी उत्पत्ति जीवन्त कोषों में होती है। अत्यन्त सूक्ष्म मात्रा में रहने पर भी यह उद्दीपन का कार्य करता है, अर्थात शरीर में होनेवाले रासायनिक परिवर्तनों में सहायक सिद्ध होता है।
शरीर में होनेवाली प्रत्येक प्रक्रिया एन्जाइमों पर निर्भर होती है। प्रत्येक शारीरिक प्रक्रिया के लिए एक (अथवा अधिक) निश्चित प्रकार का एन्जाइम आवश्यक है। इस प्रकार प्रत्येक एन्जाइम का एक निश्चित कार्यक्षेत्र होता है। शरीर की दो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण क्रियाएँ हैं- पाचन (digestion) और आत्मसात् करने का कार्य (assimilation)। ये कियाएँ ऍन्जाइमों के बिना सुचारू रूप से पूरी नहीं हो सकतीं।
हमारा शरीर विटामिन्स और क्षारों का निर्माण नहीं कर सकता; किन्तु एंजाइम उन्हें उत्पन्न कर सकता है। प्रत्येक प्राणिज अथवा वनस्पतिज कोष ऍन्जाइम का उत्पादन करने में समर्थ है। आज तक किसी भी एंजाइम को प्रत्यक्ष नहीं देखा जा सका है, किन्तु उसके अस्तित्व का अनुभव जरूर किया जा सकता है। ऐसी धारणा है कि एंजाइम एक प्रकार के प्रोटीन ही हैं।
एन्जाइम के कई प्रकार होते हैं। इनके अभाव में जीना असम्भव है। एंजाइम भोजन को पचाने में सहायक होते हैं। ये आहार का उसके मूलभूत तत्त्वों में विघटन कर देते हैं, ताकि आँतों की अन्तस्त्वचा में उनका अभिशोषण हो सके। ऐसी मान्यता है कि ऍन्जाइम पचे हुए भोजन से कोषों, ग्रंथियों, स्नायुओं अदि का नवसर्जन करता है । लीवर सिरोसिस का इलाज (Liver) और स्नायुओं में ग्लाइकोजन का संग्रह करने में इसका महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। इसके साथ ही यह फेफड़े से कार्बन डायॉक्साइड (अग्नि दायु) के निष्कासन में भी सहायक होता है।
कुछ विशेष प्रकार के एन्जाइम हड्डियों में फोस्फरस के जमाव में सहायता करते हैं। कुछ एंजाइम रक्त के लाल कणों में लौह-संयोजन उत्पन्न करते है तो कुछ रक्तरसाव के विषों और अनावश्यक पदार्थों पर आक्रमण करते हैं। वे उन्हें यूरिया और यूरिक एसिड बदल देते हैं और अन्त में उन्हें शरीर से बाहर निकाल देते हैं।
कुछ एंजाइम प्रोटीन का रूपांतर शक्कर या चरबी में और कुछ एन्जाइम चरबी रूपांतर कार्बोदित पदार्थ में कर सकते हैं। वास्तव में एन्जाइमों के हर तरह की जानकारी का पता आज तक नहीं चल पाया है।
एन्जाइमों में हर प्रकार के प्राकृतिक खाद्य पदार्थ होते हैं। गर्मी के कारण एन्जाइम नष्ट हो जाते हैं। इसके बावजूद हम लोग पकाये हुए भोजन का ही सेवन करते हैं। इसलिए हम एन्जाइमों से वंचित रह जाते हैं। हमारे दीर्घायु न हो सकने का एक कारण यह भी है हमारे शरीर में अपनी आवश्यकतानुसार एन्जाइम बनाने की क्षमता है, किन्तु इस लिए शरीर के उत्पादक अंगों को अत्यधिक श्रम करना पड़ता है।
जवानी में तो यह कार्य बिना किसी परेशानी के हो जाता है, किन्तु उम्र बढ़ने के साथ अंगों की कार्यक्षमता कम हो जाती है, एन्जाइमों का उत्पादन आवश्यकता की पूर्ति नहीं कर पाता और हम रोगों के शिकार जाते हैं। यदि कच्चे आहार में शरीर में चयापचय के लिए सभी आवश्यक ऍन्जाइम अनायास सुलभ हो जाते हो, तो शरीर के अंगों पर बोज क्यों डाला जाए?
तो फिर शरीर नव निर्माण का कार्य क्यों न हम कच्चे आहार में स्थित एन्जाइमों के भरोसे छोड़ दें। प्रकृति का यही तो उद्देश्य है।
वैज्ञानिक प्रयोगों से यह सिद्ध हो चुका है कि ऍन्जाइम के बिना शरीर सुचारु रूप में कार्य नहीं कर सकता। समुचित मात्रा में ऍन्जाइम न मिलने से शरीर में जीर्णता (degeneration) आने लगती है। अधिकांश आहारविदों का मत है कि ऍन्जाइमों की कमी के कारण ही लोग असमय वृद्ध होने लगते हैं।
ऍन्जाइमों का मानव शरीर के लिए महत्त्व दुनिया के मशहूर डॉक्टरों द्वारा –
चिकागो के मशहूर माइकल रीचि अस्पताल के अनुसंधानकर्ताओं के मतानुसार जवान व्यक्तियों की तुलना में वृद्धों के थूक में केवल तीसवें भाग के बराबर ही ऍन्जाइम पाया जाता है। जर्मनी के डॉ. ऍकार्ट ने मानवमूत्र के 1200 नमूनों का विश्लेषण किया था। उनके मतानुसार वृद्ध व्यक्तियों के मूत्र में युवा व्यक्तियों के मूत्र की अपेक्षा आधे ही ऍन्जाइम होते हैं। इलिनाइस विश्वविद्यालय के डॉ. बर्ज ने सिद्ध किया है कि वृद्धावस्था में जीव जन्तुओं में भी एन्जाइमों की कमी हो जाती है।
प्राग के चार्ल्स विश्वविद्यालय से डॉ. सेकला एवं डॉ. फॉक ने क्रमश: मधुमक्खियों और चूहों पर प्रयोग करके यह सिद्ध किया है की युवावस्था समाप्त हो जाने पर एंजाइम क्रमशः कम होते जाते है |
वृद्धावस्था में शरीर अपने आप आवश्यकता के अनुरूप ऍन्जाइम का उत्पादन नहीं कर सकता। इसलिए कच्चे व जीवन्त आहार से ऍन्जाइम प्राप्त करने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं है।
इसका अर्थ यह नहीं है कि बच्चों और युवकों को कच्चे आहार की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। कच्चे आहार का सेवन करते रहने से ऍन्जाइम का उत्पादक अंगों पर अनावश्यक रूप से बोझ नहीं पड़ता और वे जिन्दगी भर कार्यरत रहते हैं।
मानवशरीर के पाचन-तंत्र में ऍन्जाइमों का कार्य मुँह से ही प्रारम्भ हो जाता है। भोजन को चबाने की क्रिया आरम्भ होते ही मुँह में जो थूक निर्माण होता है उसमें कुछ ऍन्जाइम होते हैं, जो पाचन का कार्य प्रारम्भ कर देते हैं। यदि थूक और पेट के पाचक रसों में पर्याप्त मात्रा में ऍन्जाइम न हों, तो पेट में भोजन भारीपन पैदा कर देता है। आहार में खमीर उठने से पेट में गैस उत्पन्न होती है, जिससे बेचैनी महसूस होती है।
इन्स्यूलिन नामक ऍन्जाइम को आजकल काफी लोकप्रियता मिली है। यह कार्बोदित पदार्थों के चयापचय के लिए आवश्यक है। इसकी कमी से मधुमेह का रोग होता है। इस रोग से पीड़ित व्यक्तियों शरीर में शर्करा का योग्य उपचयन (oxidation) नहीं होता। इसलिए मरीज के रक्त और मूत्र में शर्करा पाई जाती है। हाल में हुए अनुसंधानों से पता चला है कि पैंक्रियास ग्रंथि में इन्स्यूलिन की कुल मात्रा सीमित है। यदि यह मात्रा समाप्त हो जाए अथवा अनुपयुक्त आहार-विहार से नष्ट कर दी जाए, तो डायबिटीज के लक्षण बीमारी हो जाती है।
एंजाइम के प्रकार
- लिपैसीस (Lipases)
- एमिलेज (Amylase)
- माल्टेज (Maltase)
- ट्राईपसीन (Trypsin)
- लैक्टेज (Lactase)
- एसिटाइलकोलेनेस्टेज (Acetylcholinesterase)
- हेलिकेज (Helicase)
- डीएनए पोलीमरेज (DNA polymerase)
- प्रोटेज (Protease)